आशय स्पष्ट कीजिए-
(क) मानव की जो योग्यता उससे आत्म-विनाश के साधनों का आविष्कार कराती है, हम उसे उसकी संस्कृति कहें या असंस्कृति?
मानव समाज अपने शुरूआती चरण से ही अपनी सुरक्षा के प्रति चिंतित रहा है| शुरुआत में मानव अकेला रहता था तो उसे जानवरों एवं अन्य मानवों से खतरा होता था| तव उस दौर में उसने अपनी सुरक्षा के लिए धातु एवं पत्थर के हथियारों का आविष्कार किया| उसके पश्चात धीरे-धीरे मानव के विकास के साथ-साथ उसकी असुरक्षाएं भी बढ़ती गयीं और उसने अपनी सुरक्षा के लिए अपनी योग्यता के आधार पर विभिन्न प्रकार के साधन विकसित करने शुरू कर दिए| जैसे कि- रासायनिक हथियार, जैविक हथियार एवं अन्य| अपनी सुरक्षा के साधन विकसित करना कहीं भी गलत नहीं है लेकिन वर्तमान दौर में मानव के द्वारा अपनी बुद्धि एवं कौशल के दम पर सुरक्षा के लिए जिस प्रकार के साधनों का विकास किया गया है वे इतने खतरनाक हैं कि एक-एक हथियार के प्रयोग की पूरी दुनिया का अंत संभव है| सीधी बात कहें तो ये साधन मानव की सुरक्षा कम दुनिया के विनाश के लिए ज्यादा उत्तरदायी है| तब यहाँ यही कहना उचित है कि मानव मानव की योग्यता जो उससे उसके आत्म-विनाश के साधनों का विकास कराती है वह कुसंस्कृति ही है, वह किसी भी प्रकार से संस्कृति नहीं है|